Monday, September 7, 2009

ancient indian science of sound

भरत मुनि के नाट्य शास्त्र में भारतीय ध्वनि विज्ञान के आधार का वर्णन रोचक शब्दों में दिया है। इस शास्त्र में संगीत के वाद्य यन्त्रों के निर्माण की प्रौद्योगिकी का सविस्तार वर्णन है। ध्वनि-विज्ञान के गहन ज्ञान की अनुपलब्धता में यह वर्णन असम्भव है। आज के युग के डायोटोनिक स्केल की तुलना में भरत स्केल की श्रेस्ठता सिद्ध है।
प्रकम्पन(vibrations)द्वारा भारतीय ध्वनि-विज्ञान के उद्गम का इतिहास कई हजार वर्ष पूर्व घटित एक घटना से जुडा है।
स्वाति-मुनि प्यास के कारण पानी की खोज में भटक रहे थे। उन्हें कर्ण-प्रिय संगीत की ध्वनि सुनाई दी। वे उसी दिशा में चल पडे जहाँ से वह ध्वनि आ रही थी। उन्होंने देखा कि एक जल-प्रपात है। जल की बूँदें एक निश्चित आवृति में तीन सूखे पत्तों पर ऐसे क्रम से गिर रहीं थी कि उनमें समवेत प्रकम्पन हो रहा था और उसके कारण संगीतमयी ध्वनि आ रही थी। स्वाति-मुनि प्यासे थे, किन्तु वे पानी पीना भूल गये और अपने आश्रम स्थित प्रयोगशाला में पहुँच कर विभिन्न प्रयोगों के द्वारा कल-प्रकम्पन द्वारा ध्वनि-विज्ञान के सूत्रों को रच डाला। उन्हीं सूत्रों का वर्णन भरतमुनि के नाट्य-शास्त्र में उपलब्ध है। वैदिक साहित्य में वीणा का वर्णन है। स्पष्ट है कि तार झंकार द्वारा संगीत का ज्ञान वैदिक काल में था। आज की आवश्यकता है कि इस वैज्ञानिक युग में इन सूत्रों के अध्ययन द्वारा इनकी प्राचीनता को जानें और इनके आधार पर चल कर कुछ कर जावें।
विस्तृत वर्णन आगामी ब्लाग में।

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